Bharti Bhawan Class 10 Metal And Non-Metal Long Question Part 1 easy note

 

Bharti Bhawan Class 10 Metal And Non-Metal Long Question Part 1

बिहार बोर्ड इंटर परीक्षा 2022 के सभी विद्यार्थी के सभी विषय की सभी प्रकार के प्रश्न का प्रारूप और PDF वर्ग नोट विषयवार सभी प्रकार के study note ( MCQ , Short question long question )

Bihar Board Class 10 & 12 Science all subject Note and PDF

धातु एवं अधातु दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

  1. इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के आधार पर तत्वों को धातु एवं अधातु में किस वर्गीकृत किया जाता है ? सोदाहरण समझायें।

उत्तर-इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के आधार पर तत्त्वों का धातु और अधातु में वर्गीकरण धातु के परमाणु की बाहातम कक्षा में साधारणतः 1.2 और 3 इलेक्ट्रॉन रहते हैं। ये प्रकृति । धनात्मक होती हैं। उदाहरण के तौर पर सोडियम, मैग्नीशियम तथा ऐल्मीनियम इत्यादि।

अधातुओं के परमाणु के बाह्यतम कक्षा रिक्त होती है। ये साधारणत: इलेक्ट्रॉन को धातु से ग्रहण कर अपना अटक पूरा करती हैं। उदाहरण के तौर

हरण के तौर पर कार्बन, सल्फर, ऑक्सीजन इत्यादि

  1. कारण सहित बताएं कि धातुर्य विद्युत को सुचालक और अधातये विद्यत की

कुचालक क्यों होती हैं? .

उत्तर- धातुओं के ऊष्मा एवं विद्युत का सुचालक होने का कारण यह है कि मुक्त इलेक्ट्रॉन रहते हैं जो विद्युत-धारा का संचलन करते हैं, कॉपर एवं सिल्वर की गणना सर्वोत्तम विद्युत चालकों में होती है। इसके बाद सोना, ऐल्युमीनियम और टंगस्टन का स्थान आता है। आयरन  एवं मरकरी (पारा) विद्युत प्रवाह में अपेक्षाकृत अधिक बाधक होते हैं।

अधातुओं के कुचालक होने का कारण यह है कि इसके द्रवणांक और क्वथनांक निम्न होत हैं। इसी कारण ऊष्मा एवं विद्युत का संचलन प्रायः इसमें नहीं होता है जबकि ग्रेफाइट का द्रवणांव उच्च होता है। इसलिये यह विद्युत की सुचालक होती है।

  1. धातुओं के किन्हीं तीन गुणों का उल्लेख करें।

उत्तर- धातुओं को मुख्यतः दो गुणों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है—

(a) भौतिक गुण  तथा (b) रासायनिक गुण।

(a) भौतिक गुण- धातुओं के तीन भौतिक गुण निम्न हैं

(i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास- धातुओं के परमाणु की बाह्यतम कक्षा में साधारणतः 1, 22 3 इलेक्ट्रॉन रहते हैं। उदाहरण के लिये; सोडियम, मैग्नीशियम एवं ऐल्युमीनियम के इलेक्ट्रॉन क्रमशः 2, 8.1; 2, 8, 2 तथा 2, 8.3 होते हैं। इन तत्त्वों की बाह्यतम कक्षा में क्रमशः 1, 2 और 3 इलेक्ट्रॉन हैं। इसलिये ये तत्त्व धातु हैं। यद्यपि हाइड्रोजन (H) और हीलियम (He) की बाह्यतम कक्षाओं में क्रमश: 1 और 2 इलेक्ट्रॉन हैं, फिर भी ये तत्त्व अधातु हैं।

(ii) विद्युत धनात्मक गुण- धातुयें विद्युत धनात्मक होती हैं अर्थात् इन धातुओं के परमाण अपने संयोजी शेल के इलेक्ट्रॉन को आसानी से त्याग कर धनायन में परिवर्तित हो सकते हैं, वे परमाणु अपना इलेक्ट्रॉन खोकर अपने निकटस्थ अक्रिय गैस की भाँति स्थायी विन्यास प्राप्त का लेते हैं।

 

(iii) आघातवर्धनीयता- धातुयें आघातवर्धनीय (Malleable) होती है, अर्थात् इन्हें हथा से पीटकर इनकी. चादरें बनायी जा सकती हैं। सोना एवं सिल्वर सर्वाधिक आघातवर्ध्य होत है इसलिये इनके कागज से भी. पतले पत्तर बनाये जा सकते हैं।

(b) रासायनिक गुण- धातओं में धनायन में परिवर्तन हो जाने की प्रकृति होती है. धातु के इसी प्रकृति के कारण इनमें कुछ विशिष्ट रासायनिक गुण आ जाते हैं। ये तीन गुण इस

(i) ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया- सभी धातुयें ऑक्सीजन के साथ ऑक्सइड बनती है

4Na +O2 →2Na2O( सोडियम मोनोक्साइड)

4MgO → 2MgO (मैग्नीशियम ऑक्साइट)

 भास्मिक (basic) होते हैं। कुछ ऑक्साइड जल में घुलकर क्षार बनात

धातु के ऑक्साइड भाथि

Na2O(s) + 1H2O(I) → 2NaOH(aq)

धातओं के ऑक्साइड में अम्लीय एवं भास्मिक दोनों प्रकार के जाते हैं। ये द्विधर्मी ऑक्साइड (amphoteric oxides) कहलाते हैं। ये अम्ल एवं भस्म दोनों

अभिक्रिया करते हैं। उदाहरण के लिये ZnO तनु HCI के साथ अभिक्रिया करके ZnCI,

(ii) जल के साथ अभिक्रिया-विभिन्न धातुओं की जल के साथ अभिक्रिया भिन्न-भिन्न हसे होती है। कुछ धातुयें ठण्डे जल के साथ ही अभिक्रिया कर लेती हैं। कुछ धातुओं को जल * साध गर्म करने पर अभिक्रिया होती है, जबकि कुछ धातुयें भाप के साथ अभिक्रिया करती हैं किन्तु हर स्थिति में H, गैस मुक्त होती है, एवं इन धातुओं के ऑक्साइड/हाइड्रॉक्साइड बनते हैं।

उदाहरण के लिये सोडियम, पोटैशियम एवं कैल्सियम धातुयें ठण्डे जल के साथ ही अभिक्रिया करती हैं

2Na + 2H2O → 2NaOH↑

(iii) अम्लों के साथ अभिक्रिया-धातुयें प्राय: अम्लों के साथ अभिक्रिया करके अम्लों से हाइड्रोजन मुक्त करती हैं। अम्लों के साथ धातु की अभिक्रिया का वेग धातु के विद्युत धनात्मक गुण या उसकी क्रियाशीलता पर निर्भर करता है। अधिक विद्युत धनात्मक धातु कम विद्युत धनात्मक धातु की अपेक्षा अम्लों के साथ तेजी से अभिक्रिया करती है।

उदाहरण के लिये, सोडियम धातु तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के साथ तीव्रता से अभिक्रिया . करके सोडियम क्लोराइड बनाती है तथा हाइड्रोजन गैस मुक्त होती है।

2Na + 2HCI → 2NaCl + H2↑  

  1. अधातुओं के किन्हीं तीन गुणों का उल्लेख करें।

उत्तर-धातुओं की तरह ही अधातुओं को भी मुख्यतः दो गुणों के आधार पर बाँटा जाता है-

(a) भौतिक गुण तथा (b) रासायनिक गुण। ..

(a) भौतिक गुण- अधातुओं के तीन भौतिक गुण निम्न हैं

(i) भौतिक अवस्था अधातुयें सामान्य ताप पर पदार्थ की तीनों अवस्थाओं (ठोस, द्रव एवं गस के रूप) में पायी जाती हैं। उदाहरण के लिये कार्बन, सल्फर, फॉस्फोरस, आयोडीन ठोस . रूप म ब्रामीन द्रव की अवस्था में जबकि हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, क्लोरीन आदि गैसीय

अवस्था में रहते हैं।

(ii) भंगुरता- अधातुयें प्रायः भंगुर (brittle) होती हैं जिनसे चादरें (foils) एवं तार नहीं मनाय जा सकते हैं। अतः इनमें आघातवर्धनीयता (malleability) और तन्यता (ductility) नहीं ” हथोड़े से पीटने पर या खींचने पर चूर-चूर हो जाती है।

ऊष्मा एवं विद्युत चालकता- अधातुएँ प्रायः ऊष्मा एवं विद्युत की कुचालक होती .

होती है।

(iii) ऊष्मा हैं। सिर्फ ग्रेफाइट विद्युत का सुचालक हाता

सायनिक गण– अधातुओं के तीन रासायनिक गुण इस प्रकार है

ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया– अधातुएँ ऑक्सीजन के साथ संयोग करके ऑक्साइड बनाती हैं, ये ऑक्साइड जल में घुलकर अम्ल बनाते हैं

 (ii) क्लोरीन के साथ अभिक्रिया- अधातुयें क्लोरीन के साथ अभिक्रिया करके क्लोराष्ट्रा बनाती हैं। उदाहरण के लिये, फॉस्फोरस की अभिक्रिया क्लोरीन के साथ कराने पर फॉस्फोर ट्राइक्लोराइड बनता है।

P4 + 6C2 → 4PCI3

उसी प्रकार हाइड्रोजन की अभिक्रिया क्लोरीन से कराने पर हाइड्रोजन क्लोराइड बनता है।

H2 + Cl2 → 2HCI

(iii) हाइड्रोजन के साथ अभिक्रिया– अधातुयें हाइड्रोजन के साथ संयोग करके हाइड्राइड का निर्माण करती हैं।

H2+S→ H2S.

     हाइड्रोजन सल्फाइड

 N2, +3H2, → 2NH3

            अमोनिया

  1. जस्ता कॉपर सल्फेट के विलयन से ताँबा को विस्थापित कर देता है, किन्तु ताँबा जिंक सल्फेट के विलयन से जस्ता को विस्थापित नहीं कर सकता, क्यों?

उत्तर- क्रियाशील धातुयें अपने से कम क्रियाशील धातु के लवण के विलयन से कम क्रियाशील धातु को विस्थापित कर देती है।

जब जिंक धातु के एक टुकड़े को कॉपर सल्फेट के विलयन में डालते हैं तो कॉपर सल्फेट विलयन का नीला रंग धीरे-धीरे गायब होने लगता है और कॉपर धातु की लाल परत जिंक धातु पर जम जाती है।

Zn +     CuSO4    → ZnSO4 + Cu↓

जिंक   कॉपर सल्फेट  जिंकसल्फेट   कॉपर

धात अधिक क्रियाशील होने के कारण विलयन से कॉपर धातु को विस्थापित कर देती है।

ताँबा (कॉपर) बेहद कम क्रियाशील धातु है। जो जिंक सल्फेट के विलयन से जस्ता को विस्थापित नहीं कर सकता है। अतः कहा जा सकता है कि जस्ता कॉपर सल्फेट के विलयन स ताँबा को विस्थापित कर देती है, जबकि ताँबा जिंक सल्फेट के विलयन से जस्ता को विस्थापित नहीं कर सकता है।

 

 

  1. द्विधर्षी ऑक्साइड क्या है ? द्विधर्षी ऑक्साइडों को दो. उदाहरणा दें।

र धातओं के ऑक्साइड में अम्लीय एवं भास्मिक या क्षारीय दोनों प्रकार के गण सानिधर्मी ऑक्साइड (amphoteric oxides) कहलाते हैं। ये अम्ल एवं भस्म दोनों के ऑक्साइड (Zn0) दोनों द्विधर्मी ऑक्साइड हैं।पशिक्रिया करते हैं। उदाहरण के लिये ऐल्युमीनियम ऑक्साइड (AI3O2) तथा जिंक –

  1. भौतिक व रासायनिक गुणों के आधार पर धातु एवं अधातु में अन्तर स्पष्ट करें।

उत्तर- भौतिक व रासायनिक गुणों के आधार पर धातु एवं अधातु में अन्तर इस प्रकार किया जा सकता है.

भौतिक गुणों के आधार पर धातु एवं अधातु में विभेद धातुएँ

(Metals)

धातुएँ (Metals)

 

अधातुएँ (Non-Metals)
.. 1. धातुएँ सामान्य ताप पर ठोस होती हैं परंतु केवल पारा सामान्य ताप पर तरल अवस्था में होता है।

2. धातुएँ तन्य तथा आघातवर्ध्य तथा लगिष्णु होती हैं।

13. धातुएँ प्रायः चमकदार होती हैं अर्थात् उनमें धात्विक चमक होती है।

4. धातुएँ ऊष्मा तथा विद्युत् की सुचालक होती हैं परंतु बिस्मथ इसका अपवाद है।

5. धातुओं के गलनांक तथा क्वथनांक बहुत अधिक होते हैं।

6. धातुएँ अधिकांशतः कठोर होती हैं परंतु सोडियम तथा पोटाशियम चाकू से काटी जा सकती है।

7. धातुओं का आपेक्षिक घनत्व अधिक होता परंतु Na, K इसके अपवाद हैं।

8. धातुएँ अपारदर्शक होती हैं।

 

1. अधातुएँ सामान्य ताप पर तीनों अवस्थाओं में पाई जाती हैं। फॉस्फोरस और सल्फर ठोस रूप में, H2,O2,N2, गैसीय रूप में तथा ब्रोमीन तरल रूप मेंहोती हैं।

2. ये प्रायः भंगुर होती हैं।

3. अधातुओं में धात्विक चमक नहीं होती

परंतु हीरा, ग्रेफाइट तथा आयोडीन इसके अपवाद हैं।

4. ग्रेफाइट और गैस कार्बन को छोड़कर

सभी अधातुएँ कुचालक हैं।

5. अधातुओं के गलनांक तथा क्वथनांक कम होते हैं।

6. इनकी कठोरता भिन्न-भिन्न होती है। हीरा सब पदार्थों से कठोरतम है।

7. अधातुओं का आपेक्षिक घनत्व प्रायः है कम होता है। .

8. गैसीय अधातुएँ पारदर्शक हैं।

 

 

रासायनिक गुणों के आधार पर धातु एवं अधातु में विभेद

धातुएँ (Metals) अधातुएँ (Non-Metals):
1. धातुएँ क्षारीय ऑक्साइड बनाती हैं जिसमें से कुछ क्षार बनाती हैं।

2. धातुएँ अम्लों में से हाइड्रोजन गैस पुनः स्थापित करती हैं तथा अनुरूप लवण बनाती हैं।

3. धनात्मक आवेश की प्रकति होती हैं।

4.  धातुएँ क्लोरीन से संयोग करके क्लोराइड बनाती हैं, परंतु वे सहसंयोजक होता

5. कुछ धातुएँ हाइड्रोजन से संयोग करके हाइड्रोक्साइड बनाती हैं जो विद्युत होते हैं।

6. धातुएँ अपचायक हैं।

7. धातुएँ जलीय विलयन में धनायन बनाती हैं।

1. अधातएँ अम्लीय तथा उदासीन ऑक्साइड बनाती हैं।

2.अम्लों से अभिक्रिया करके हाइड्रोजन गैस को पुनः स्थापित नहीं करती हैं।

3. अधातुएँ ऋणात्मक आवेश की प्रकृति की होती हैं।

4. अधातुएँ क्लोरीन से संयोग कर क्लोशन बनाती हैं जो वैद्युत संयोजक होते हैं।  

5. अधातुएँ हाइड्रोजन के साथ अनेक स्थान संयोजक हाइड्राइड बनाती हैं जो सहसंयोजक होते हैं।

6. अधातुएँ ऑक्सीकारक हैं।

7. अधातुएँ जलीय विलयन में ऋणायन

बनाती हैं।

 

 

  1. वैद्युत अपघटन विधि से धातु का शोधन किस प्रकार किया जाता है?

उत्तर-वैद्यत अपघटन विधि द्वारा धातु का शोधनइस विधि द्वारा ताँबा (कॉपर) जिंक टिन, निकेल, सिल्वर, गोल्ड, ऐल्युमिनियम आदि धातुओं को शुद्ध रूप में प्राप्त किया जाता है।

इसमें अशुद्ध धातु को ऐनोड एवं शुद्ध धातु की प्लेट को कैथोड के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। धातु के एक लवण का विलयन वैद्युत अपघट्य का कार्य करता है। विद्युत धारा प्रवाहित करने पर ऐनोड से शुद्ध धातु निकलकर विलयन में आती है और विलयन में से उतनी ही शल धातु कैथोड पर एकत्रित हो जाती है। विलेय अपद्रव्य विलयन में चले जाते हैं, जबकि अविलय अपद्रव्य ऐनोड के नीचे पेंदी में एकत्र हो जाते हैं जो “ऐनोड मड” कहलाते हैं।

Bharti Bhawan Class 10 Metan And Non-Metal Long Question Part 1

 

चित्र : वैद्युत अपघटन द्वारा शोधन

  1. वैसे किन्हीं तीन अधातुई ऑक्साइडों के नाम लिखें जो अम्लीय होते हैं, जल के साथ ऑक्साइडों की अभिक्रिया कैसे होती है ?

उत्तर-(i) कार्बोनिक अम्ल (H2CO3) (ii) सल्फ्यू रस अम्ल (H2SO3) तथा (iii) सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4) ऐसे तीन अधातुई ऑक्साइड हैं जो अम्लीय होते हैं।

अधातयें ऑक्सीजन के साथ संयोग करके अम्लीय ऑक्साइड बनाती हैं। ये ऑक्साइड जल में घुलकर अम्ल बनाते हैं।

   C+ O2 →  CO2

                  कार्बन डाइऑक्साइड

H2O+ CO2 → H2CO3

कार्बोनिक अम्ल

.

  1. अयस्कों के सांद्रण से क्या समझते हैं ? सल्फाइड अयस्क का सांद्रण आप किस विधि द्वारा करेंगे?

उत्तर-अयस्क का सांद्रण (Dressing of the ore)-अयस्क में विद्यमान अपद्रव्यों का दूर करना अयस्क का सांद्रण कहलाता है।

 

Bharti Bhawan Class 10 Metan And Non-Metal Long Question Part 1

सल्फाइड अयस्क के सांदण के लिए फेन उत्प्लावन विधि का प्रोयोग कर किया जाता है

प्रयोग- सल्फाइड अयस्क के भरी चूर्ण को जल से भरी टैंक में डालते है  इसके बाद जल में थोडा तेल डालकर वायु प्रवाह द्वारा जल को खूब हिलाया जाता है, विलेय अपद्रव जल में घुल जाते है और सल्फर अयस्क के हलके कण फेन  के साथ जल की सतह के ऊपर आ जाते हैं जिन्हें अलग कर लिया जाता है फेन को  समाप्त करने के लिये उसमें थोडा अम्ल मिलाया जाता है  फिर सल्फर अयस्क को छानकर सुखा (dry) लेते हैं।

 

चित्र : फेन उत्प्लवन विधि

 

  1. अयस्कों के निस्तापन एवं जारण से क्या समझते हैं ? इनमें अन्तर स्पष्ट करें।

उत्तर-अयस्कों का निस्तापन– निस्तापन की प्रक्रिया में अयस्क को वायु की अनुपस्थिति में उसके द्रवणांक से कम ताप पर तीव्रता से गर्म किया जाता है।

. उदाहरण—(i) ऑक्साइड अयस्क को गर्म करने पर उसमें उपस्थित जलवाष्प एवं वाष्पशील अपद्रव्य बाहर निकल जाते हैं।

Al2O3·2H2O →Al2O3 +2H2O

(ii) कार्बोनेट अयस्क को गर्म करने पर वह धातु के ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है।

CaCO3→ CaO + CO2

CaCO3 + MgCO3 → CaO + MgO+ 2 CO2

ZnCO3 →ZnO+ CO2

CaCO3· Cu(OH)2 → 2CuO+ H2O+ CO2

 

अयस्कों का जारण— जारण प्रक्रिया में सांद्रित अयस्क को पर्याप्त वायु की आपूर्ति में अयस्क के द्रवणांक से कम ताप पर तीव्रता से गर्म करते हैं। इससे उसमें विद्यमान आर्सेनिक तथा अन्य अपद्रव्य ऑक्सीकृत होकर वाष्प रूप में बाहर निकल जाते हैं तथा धातु ऑक्साइड के रूप में परिवर्तित हो जाती है। उदाहरण -(i) जिंक ब्लेंड (ZnS) जारित होकर ZnO में बदल जाता है।

2ZnS + 3O2 → 2ZnO + 2SO2

(ii) गैलेना (PbS) जारित होकर लिथार्ज (PbO) में परिणत हो जाता है।

2PbS + 302→ 2Pb0+2S02

(iii)  सिनेबार (HgS) का जारण करने पर वह सीधे मरकरी (पारा) में बदल जाता है। HgS +O2, → Hg + SO2, .

(iv)पाइराइट (Fes,) का जारण करने पर वह फेरिक ऑक्साइड (Fe,0) में आइरन पाइराइट परिवर्तित हो जाता है।

4FeS2 + 11O2→ Fe203 + 8SO2

अत: कहा जा सकता है कि निस्तापन एवं जारण दोनों प्रक्रियाओं द्वारा धातु का ऑक्साड ही प्राप्त होता है। किन्तु फिर भी इन दोनों प्रक्रियाओं में कुछ भिन्नता है,

जो ये हैं

निस्तापन जारण
1 इस प्रक्रिया में अयस्क को वायु की अनुपस्थिति में गर्म किया जाता है।

2. यह ऑक्साइड एवं कार्बोनट अयस्कों के लिये प्रयुक्त होती है।

1 इस प्रक्रिया में अयस्क को वायु की उपस्थिति में गर्म किया जाता है।

2. यह सल्फाइड अयस्कों के लिये प्रयुक् होती है।

 

 

_ 12. कारण बतायें.

(i) सोना एवं चाँदी का उपयोग आभूषणों के निर्माण में किया जाता है।

(ii) सोडियम-धातु को किरोसिन में डुबाकर रखा जाता है। .

(iii) ऐल्यूमीनियम के अतिक्रियाशील होने के बावजूद इसका उपयोग घरेलू बरतन बनाने में किया जाता है।

(iv) मलिन पड़े ताँबा के बरतनों को नींबू या इमली के रस से साफ किया जाता है।

उत्तर-(i)सोना एवं चाँदी के अग्रलिखित गुणधर्मी के कारण इनका प्रयोग आभूषण बनाने के लिए किया जाता है—

(a) तन्यता, (b) आघातवर्ध्यता, (c) जंग के प्रति सुरक्षिता

(ii)सोडियम अत्यधिक अभिक्रियाशील होती है। यह वातावरण में पाई जानेवाली ऑक्सीजन के साथ मिलकर अपना-अपना ऑक्साइड बनाते हैं तथा जल के संपर्क में आने पर जल जाता है। इसलिए इसे बचाने के लिए किरोसिन तेल में डुबोकर रखा जाता है।

(iii)ऐल्युमीनियम एक शक्तिशाली एवं सस्ता धातु है। यह ताप का सुचालक है। परंतु यह अत्यधिक अभिक्रियाशील है। आई वायु के संपर्क में आने पर इसकी सतह पर जानेवाली ऐल्युमीनियम ऑक्साइड की परत चढ़ जाती है। यह परत आर्द्र वायु को क्रियाशील धातु के संपर्क में नहीं आने देती और धातु को जंग लगने से बचाती है। इन सभी कारणों से ऐलुमीनियम का प्रयोग खाना बनाने के बर्तन बनाने में किया जाता है।

(iv) ताँबा ऑक्साइड अम्लों में अभिक्रिया करता है, किन्तु ताँबा स्वयं अभिक्रिया नहीं करता। अतः ताँबे को अम्लीय पदार्थों यानी नींबू या इमली के रस से साफ किया जा सकता है ये ताँबे में संक्षारित हिस्सों (कॉपर ऑक्साइड) को अलग कर देता है तथा शुद्ध रह जाता है।

  1. उत्कृष्ट गैसों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखें और यह बतायें कि ये गैसें। अक्रियाशील क्यों होती हैं ?

उत्तर-उत्कृष्ट गैसों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास इस प्रकार हैंउत्कृष्ट गैस

..

उत्कष्ट गैसें (He, Ne, Ar, Kr, Xe और Rn) एकदम अभिक्रियाशील होती हैं और य यौगिक नहीं बना सकती हैं। ये स्थायी होती हैं। इसीलिये ये दूसरे परमाणु के साथ अभिक्रिया नही करती हैं। हीलियम (He) परमाणु का प्रथम शेल ही अंतिम शेल है जिसमें 2 इलेक्ट्रॉन ही रह सका हैं। अतः यह शेल भी पूर्णतः भरा हुआ है। अन्य उत्कृष्ट गैसों के परमाणुओं के बाह्यतम श

 

भी इलेक्ट्रॉनिक विन्यास स्थायी हैं। इसीलिये उत्कृष्ट गैसें

 

रहने के कारण इनके भी इलेक्ट्रॉनिक विरा में आठ इलेक्ट्रॉन रहने अक्रियाशील होती हैं।

  1. रासायनिक बंधन किसे कहते हैं ? यह कितने प्रकार का होता है ?

उत्तर :- रासायनिक बंधन –  तत्वों के दो या अधिक परमाणुओं के बीच रासायनिक संयोग होता है। परमाणु एक बल से आपस में बँधे होते हैं. जो रासायनि बंधन कहलाता है अत: वह रासायनिक बल जो किसी अणु में परमाणुओं को एक साथ बाँध कर रखता है उसे रासायनिक बंधन कहलाता है

 

रासायनिक बंधन के प्रकार बंधन।

  1. वैद्युत संयोजन बंधन:- हो अधिक इलेक्ट्रॉनों के स्थानान्तरण बंधन या आयनिक बंधन कहते

दो परमाणुओं के बीच एक परमाणु से दूसरे परमाण में एक या के स्थानान्तरण के फलस्वरूप जो रासायनिक बंधन बनता है। उसे वैद्यत संयोजक आयनिक बंधन कहते हैं। इसे ध्रुवीय बंधन भी कहते हैं।

 

Na* Cl-→ NaCl

गत आवेश वाले Na और CI आयनं स्थिर वैद्युत आकर्षण बल द्वारा एक दूसरे के साथ सहसंयोजक बंधन- जब दो परमाणु आपस में इलेक्ट्रॉनों का. साझा करके अपना अष्टक करते हैं. तब उनके बीच बना हुआ रासायनिक बंधन सहसंयोजक बंधन कहलाता है। यह तीन प्रकार का होता है

(i) एकल सहसंयोजक बंधन (ii) द्विक सहसंयोजक बंधन (iii) त्रिक सहसंयोजक बंधन

Bharti Bhawan Class 10 Metal And Non-Metal Long Question Part 1

 

  1. वैद्युत संयोजक बंधन क्या है और यह कैसे बनता है ?

उत्तर-वैद्युत संयोजक बंधन-दो परमाणुओं के बीच एक परमाणु से दूसरे परमाण या अधिक इलेक्ट्रॉनों के स्थानांतरण के फलस्वरूप बने रासायनिक बंधन को वैद्युत संयोजक या आयनिक बंधन कहते हैं। इसे ध्रुवीय बंधन भी कहते हैं।

इस प्रकार के बंधन में एक परमाणु से दूसरे परमाणु में एक या अधिक इलेक्ट्रॉनों के स्थानांतरण होता है। एक परमाणु अपना अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन दूसरे परमाणु को प्रदान करता। जिससे दोनों परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास उनके निकटतम उत्कृष्ट गैस के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास की तरह ही स्थायी हो जाते हैं। जो परमाणु इलेक्ट्रॉन प्रदान करता है। उसपर धन आवेश और जो परमाणु प्रदत्त इलेक्ट्रॉन प्राप्त करता है उसपर ऋण आवेश उत्पन्न हो जाते हैं। धनाविष्ट परमाणु धनायन (cation) और ऋणाविष्ट परमाणु ऋणायन (anion) कहलाता है। विपरीत आवेश वाले ये दोनों आयन स्थिर वैद्युत आकर्षण बल द्वारा परस्पर जुट जाते हैं। इन दोनों परमाणुओं को एक साथ बाँधकर रखनेवाला यह आकर्षण बल वैद्युत संयोजक बंधन या आयनिक बंधन कहलाता है। .

वैद्युत संयोजक बंधन का बनना:- इसके अंतर्गत हम कैल्सियम ऑक्साइड के बनने का वर्णन करेंगे

कैल्सियम (Ca) और ऑक्सीजन (O) परमाणु परस्पर संयोग करके कैल्सियम ऑक्साइड (CaO) का निर्माण करते हैं। कैल्सियम और ऑक्सीजन की परमाणु संख्यायें क्रमशः 20 और 8 होती हैं। अतः इनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास इस प्रकार होंगे

Ca (20)         2,8,8,2

O(8)              2,6

Ca परमाणु में संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या 2 हैं जबकि 0 परमाणु में 6 है। जब ये दोनों परमाणु परस्पर संयोग करते हैं तब Ca परमाणु के दोनों संयोजी इलेक्ट्रॉन ऑक्सीजन के संयोजी शेल में चले जाते हैं। अब कैल्सियम और ऑक्सीजन दोनों के बाह्यतम शेल में अष्टक पूरा हो जाता है जिससे वे उत्कृष्ट गैस का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास प्राप्त करके स्थायी बन जाते हैं। इस अवस्था में कैल्सियम परमाणु पर दो धन आवेश और ऑक्सीजन परमाणु पर दो ऋण आवेश उत्पन्न हो जाते हैं।

   Ca →          Ca2+ +   2e

 कैल्सियम परमाणु कैल्सियम आयन

O +2e  → O2-

ऑक्सीजन परमाणु

विपरीत आवेश वाले Ca+ और O2- आयन स्थिर वैद्युत आकर्षण बल द्वारा परस्पर जुड़कर कैल्सियम ऑक्साइड (Ca+ O2- या CaO) बनाते हैं।

कैल्सियम ऑक्साइड एक वैद्युत संयोजक यौगिक या आयनिक यौगिक है।

16.”सहसयोजक बंधन से क्या समझते हैं ? इसके बनने की प्रक्रिया का उल्लेख करा

उत्तर-सहसंयोजक बधन- जब दो परमाणु आपस में इलेक्ट्रॉनों का साझा करके अपना अष्टक पूरा करते हैं तब उनके बीच बना हुआ रासायनिक बंधन सहसंयोजक बंधन कहलाता हा

जब संयोग करने वाले दोनों परमाणु के पास अपने निकटस्थ उत्कृष्ट गैस के इलेक्ट्रानिक विन्यास की अपेक्षा इलेक्ट्रॉनों की कमी हो तब वे दोनों परमाणु आपस में समान संख्या में इलक्ट्रा

 

साझेदारी में शामिल इलेक्ट्रॉन युग्मों पर समान अधिकार रहता है। इस प्रकार ये दोनों परमाणुओं के बीच बना

का साझा करके अपना अष्टक मानों परमाणुओं का समान भी

सहसंयोजक बंधन कहलाता है।

क्लोरीन के दो परमाणु परस्पर संयोग संख्या 17 होती है। अत: इसका निकटस्थ उत्कृष्ट गैस ऑर्गन का इलेक्ट्रॉन की आवश्यकता है. मग अपना अष्टक पूरा करते हैं। प्राप्त कर लेते हैं

. सहसंयोजक बंधन के बनने की तीन प्रक्रिया होती है—

(i) एकल सहसंयोजन बंधन  (ii) द्विक सहसंयोजक बंधन तथा (iii) त्रिक सहसंयोजक बंधन

.  

इसके अन्तर्गत हम क्लोरीन अणु के बनने का वर्णन करेंगेपरमाण परस्पर संयोग कर क्लोरीन अणु (CI) बनाते हैं। क्लोरीन की परमाणु है। अतः इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 8,7 होता है, क्लोरीन परमाणु को अपने

गैस ऑर्गन का स्थायी विन्यास (2, 8, 8) प्राप्त करने के लिये एक अतिरिक्त श्यकता है, संयोग करने वाले दोनों परमाणु एक-एक इलेक्ट्रॉन का साझा करके परा करते हैं। एसा करक दानो परमाणु ऑर्गन जैसा स्थायी इलेक्ट्रॉनिक विन्यास

(ii) दिक सहसंयोजक बंधन या दिबंधन_ इसके अन्तर्गत हम ऑक्सीजन अणु (0) के बनन का वर्णन करेने  

ऑक्सीजन परमाणु के संयोजी शेल में 6 इलेक्ट्रॉन हैं। अष्टक पूर्ण करने के लिये ऑक्सीजन परमाणु को दो इलेक्ट्रॉन की आवश्यकता है। अतः ऑक्सीजन के दो परमाणु दो-दो इलेक्ट्रॉनों का परस्पर साझा कर स्थायी ऑक्सीजन का निर्माण करते हैं।

(iii) त्रिक  सहसंयोजक बंधन या त्रिबंधन – इसके अन्तर्गत हम नाइट्रोजन अणु (N2) के बनाने का वर्णन करेंगे. नाइट्रोजन

परमाणु के संयोजी शेल में 5 इलेक्ट्रॉन रहते हैं। अतः नाइट्रोजन के दो आपस में तीन-तीन इलेक्ट्रॉना

परमाणु इलक्ट्रानों का साझा करके अपना स्थायी अष्टक पूरा करते हैं

 

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